JAI SHRI RAM

JAI SHRI RAM

Wednesday, 15 August 2012

मुनि प्रसाद बलि तात तुम्हारी। ईस अनेक करवरें टारी।।

मख रखवारी करि दुहुँ भाई। गुरु प्रसाद सब बिद्या पाई।।

मुनितय तरी लगत पग धूरी। कीरति रही भुवन भरि पूरी।।

कमठ पीठि पबि कूट कठोरा। नृप समाज महुँ सिव धनु तोरा।।

बिस्व बिजय जसु जानकि पाई। आए भवन ब्याहि सब भाई।।

सकल अमानुष करम तुम्हारे। केवल कौसिक कृपाँ सुधारे।।

आजु सुफल जग जनमु हमारा। देखि तात बिधुबदन तुम्हारा।।

जे दिन गए तुम्हहि बिनु देखें। ते बिरंचि जनि पारहिं लेखें।।

दो0-राम प्रतोषीं मातु सब कहि बिनीत बर बैन।

सुमिरि संभु गुर बिप्र पद किए नीदबस नैन।।357।।

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नीदउँ बदन सोह सुठि लोना। मनहुँ साँझ सरसीरुह सोना।।

घर घर करहिं जागरन नारीं। देहिं परसपर मंगल गारीं।।

पुरी बिराजति राजति रजनी। रानीं कहहिं बिलोकहु सजनी।।

सुंदर बधुन्ह सासु लै सोई। फनिकन्ह जनु सिरमनि उर गोई।।

प्रात पुनीत काल प्रभु जागे। अरुनचूड़ बर बोलन लागे।।

बंदि मागधन्हि गुनगन गाए। पुरजन द्वार जोहारन आए।।

बंदि बिप्र सुर गुर पितु माता। पाइ असीस मुदित सब भ्राता।।

जननिन्ह सादर बदन निहारे। भूपति संग द्वार पगु धारे।।

दो0-कीन्ह सौच सब सहज सुचि सरित पुनीत नहाइ।

प्रातक्रिया करि तात पहिं आए चारिउ भाइ।।358।।

नवान्हपारायण,तीसरा विश्राम

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भूप बिलोकि लिए उर लाई। बैठै हरषि रजायसु पाई।।

देखि रामु सब सभा जुड़ानी। लोचन लाभ अवधि अनुमानी।।

पुनि बसिष्टु मुनि कौसिक आए। सुभग आसनन्हि मुनि बैठाए।।

सुतन्ह समेत पूजि पद लागे। निरखि रामु दोउ गुर अनुरागे।।

कहहिं बसिष्टु धरम इतिहासा। सुनहिं महीसु सहित रनिवासा।।

मुनि मन अगम गाधिसुत करनी। मुदित बसिष्ट बिपुल बिधि बरनी।।

बोले बामदेउ सब साँची। कीरति कलित लोक तिहुँ माची।।

सुनि आनंदु भयउ सब काहू। राम लखन उर अधिक उछाहू।।

दो0-मंगल मोद उछाह नित जाहिं दिवस एहि भाँति।

उमगी अवध अनंद भरि अधिक अधिक अधिकाति।।359।।

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