सुदिन सोधि कल कंकन छौरे। मंगल मोद बिनोद न थोरे।।
नित नव सुखु सुर देखि सिहाहीं। अवध जन्म जाचहिं बिधि पाहीं।।
बिस्वामित्रु चलन नित चहहीं। राम सप्रेम बिनय बस रहहीं।।
दिन दिन सयगुन भूपति भाऊ। देखि सराह महामुनिराऊ।।
मागत बिदा राउ अनुरागे। सुतन्ह समेत ठाढ़ भे आगे।।नाथ सकल संपदा तुम्हारी। मैं सेवकु समेत सुत नारी।।करब सदा लरिकनः पर छोहू। दरसन देत रहब मुनि मोहू।।अस कहि राउ सहित सुत रानी। परेउ चरन मुख आव न बानी।।दीन्ह असीस बिप्र बहु भाँती। चले न प्रीति रीति कहि जाती।।रामु सप्रेम संग सब भाई। आयसु पाइ फिरे पहुँचाई।।दो0-राम रूपु भूपति भगति ब्याहु उछाहु अनंदु।जात सराहत मनहिं मन मुदित गाधिकुलचंदु।।360।।–*–*–बामदेव रघुकुल गुर ग्यानी। बहुरि गाधिसुत कथा बखानी।।सुनि मुनि सुजसु मनहिं मन राऊ। बरनत आपन पुन्य प्रभाऊ।।बहुरे लोग रजायसु भयऊ। सुतन्ह समेत नृपति गृहँ गयऊ।।जहँ तहँ राम ब्याहु सबु गावा। सुजसु पुनीत लोक तिहुँ छावा।।आए ब्याहि रामु घर जब तें। बसइ अनंद अवध सब तब तें।।प्रभु बिबाहँ जस भयउ उछाहू। सकहिं न बरनि गिरा अहिनाहू।।कबिकुल जीवनु पावन जानी।।राम सीय जसु मंगल खानी।।तेहि ते मैं कछु कहा बखानी। करन पुनीत हेतु निज बानी।।छं0-निज गिरा पावनि करन कारन राम जसु तुलसी कह्यो।रघुबीर चरित अपार बारिधि पारु कबि कौनें लह्यो।।उपबीत ब्याह उछाह मंगल सुनि जे सादर गावहीं।बैदेहि राम प्रसाद ते जन सर्बदा सुखु पावहीं।।सो0-सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।361।।मासपारायण, बारहवाँ विश्रामइति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषबिध्वंसनेप्रथमः सोपानः समाप्तः।(बालकाण्ड समाप्त)———-–*–*–
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